पीलीभीत सावधान साटा धान लगाने वाले किसान एवं बीज बिक्री करने वाले दुकानदार पर होगी कार्रवाई

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पीलीभीत सावधान साटा धान लगाने वाले किसान एवं बीज बिक्री करने वाले दुकानदार पर होगी कार्रवाई

पीलीभीत में लगभग 12000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में प्रति वर्ष ग्रीष्मकालीन धान की खेती की जाती है। ग्रीष्मकालीन धान की रोपाई माह फरवरी के अन्त से प्रारम्भ होकर मार्च के अन्त तक की जाती है। धान की रोपाई के लिए खेत में पानी भरकर पडलिगं की प्रक्रिया अपनाई जाती है। पडलिंग में ट्रेक्टर पर अत्याधिक भार पड़ता है, जिसके कारण मृदा की सतह ठोस हो जाती है। मृदा की सतह ठोस हो जाने के कारण वर्षा जल भूमि के अन्दर कम मात्रा में जाता है तथा भूमि की जलधारण क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप वर्षा जल बहकर नदी-नालों के माध्यम से खेत से बाहर चला जाता है। ग्रीष्मकालीन धान में पानी की अत्याधिक आवश्यकता होती है तथा फसल में हर चार से पांच दिन के अन्तराल पर सिंचाई होने के कारण अत्याधिक मात्रा में भूमिगत जल का दोहन होता है। चूंकि इस मौसम में वर्षा की कोई संभावना नहीं होती है, फलस्वरूप सिंचाई के लिए डीजल चालित पम्प सेटों का उपयोग सिंचाई में किया जाता है, जिसके कारण वायु प्रदूषण भी उत्पन्न होता है। अत्याधिक मात्रा में जल के दोहन से भू-गर्भ जल निरन्तर नीचे जा रहा है। जिसके कारण निकट भविष्य में जल संकट उत्पन्न होने की प्रबल सम्भावनाएं है। एक अनुमान के अनुसार एक किग्रा चावल उत्पादन में लगभग 4800 लीटर जल की आवश्यकता होती है, जो शतप्रतिशत भूमिगत जल के माध्यम से पूरी की जाती है। ग्रीष्मकालीन धान के स्थान पर अन्य कम पानी चाहने वाली फसलें जैसे- मक्का, उर्द, मूंग, सूरजमुखी, कद्दू वर्गीय फसलें आदि विकल्प के रूप में उपलब्ध हैं। उर्द, मूंग सूरजमुखी एवं कद्दू वर्गीय फसलों के पकने की अवधि अत्यन्त कम होती है तथा ग्रीष्मकालीन मौसम के लिए पूर्णतः उपयुक्त होती हैं एवं इनकी जल की मांग अत्याधिक कम होती है। जनपद के प्रगतिशील कृषक, मीडिया, कृषक समूहों, एफ0पी0ओ0 आदि के द्वारा भी ग्रीष्मकालीन धान के उत्पादन को रोकने के लिए समस-समय पर अनुरोध किया जाता रहा है। ग्रीष्मकालीन धान के उत्पादन में अत्याधिक मात्रा में भूमिगत जल के दोहन से उक्त विकास खण्डों की डार्क श्रेणी में जाने की सम्भावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता है। ग्रीष्मकालीन धान की कटाई मुख्यताः कम्बाईन हार्वेस्टर के द्वारा की जाती है। कम्बाईन हार्वेस्टर से फसल कटने के कारण उत्पन्न पराली को जलाने की समस्याएं भी बढ़ जाती हैं, जिसके कारण पर्यावरण प्रदूषण होता है एवं भूमि में उपस्थित लाभदायक जीव एवं जीवाश्म कार्बन जलकर नष्ट हो जाती है, जिसके फलस्वरूप भूमि की उर्वरा शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके साथ यह भी अगवत कराना है कि मा0 उच्चतम न्यायालय एवं मा0 राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण नई दिल्ली द्वारा दिये गये दिशा-निर्देश के अन्तर्गत पराली जलाना प्रतिबन्धित किया गया है।
यह भी उल्लेखनीय है कि जनपद में खरीफ एवं रबी मौसम की फसलों के उपयोग हेतु ही उर्वरक के लक्ष्य प्राप्त होते हैं, जिसके अनुरूप ही जनपद में उर्वरकों की आपूर्ति सुनिश्चित हो पाती है। ग्रीष्मकालीन धान के उत्पादन में कृषकों द्वारा अधिक उत्पादन लेने के उद्देश्य से अत्याधिक मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार खरीफ एवं रबी मौसम की फसलों के उत्पादन हेतु उपलब्ध उर्वरक का उपयोग ग्रीष्मकालीन धान के उत्पादन में हो जाता है। जिसके फलस्वरूप खरीफ एवं रबी फसलों के उत्पादन में उर्वरकों की कमी हो जाती है।
अतः कृषक बन्धुओं से अनुरोध है कि अपनी भूमि में ग्रीष्मकालीन धान/साटा धान की रोपाई न करें। ग्रीष्म कालीन धान लगाने से भूगर्भ जल का अत्याधिक उपयोग होता है। जिसके करण भूगर्भ जल स्तर तेजी से नीचे जाने एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्परिणामों के दृष्टिगत ग्रीष्मकालीन धान की खेती प्रतिबन्धित की जाती है। तथा सभी थोक एवं फुटकर बीज विक्रेताओं को निर्देशित किया जाता है कि वे अपने-अपने प्रतिष्ठानों से ग्रीष्म कालीन धान /साटा धान के बीजों की ब्रिकी न करें यदि किसी विक्रेता को ग्रीष्म कालीन धान की ब्रिकी करता हुआ पाया जाता है अथवा प्रतिष्ठान पर ग्रीष्म कालीन धान का बीज पाया जाता है तो उस बीज विक्रेता के विरूद्ध वैधानिक कार्यवाही अमल में लायी जायेगी। अधिक जानकारी के लिए उप कृषि निदेशक कार्यालय पीलीभीत से सम्पर्क कर सकते है।