योगी ने देवी पाटन मंदिर में की शक्ति की आराधना

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Devi Patan temple, बलरामपुर 22 मार्च (वार्ता) : देवी पाटन मंदिर के संरक्षक गोरक्षपीठाधीश्वर महंत और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को जगत जननी मां पाटेश्वरी की दर पर माथा टेका और पुष्प ,नारियल ,चुनरी ,लौंग ,इलायची कपूर व अन्य पूजन सामग्रियां चढाकर पूजा अर्चना कर राजकीय चैत्र नवरात्रि मेले का शुभारंभ किया। जगत जननी मां जगदम्बा की 51 शक्तिपीठों में से एक आदि शक्ति माँ पाटेश्वरी देवी पाटन मंदिर मे चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिवस से ही देश विदेश से आये लाखों दर्शनार्थियों का तांता लगा हुआ है। देवीपाटन मंदिर उत्तर प्रदेश मे बलरामपुर जिले की नेपाल सीमा से सटे तुलसीपुर तहसील क्षेत्र के पाटन गांव मे सिरिया नदी के तट पर स्थित होने के कारण अतिसंवेदनशील और महत्वपूर्ण माना जाता है।

Devi Patan temple

योगी ने मंदिर मे दर्शन पूजन करने के पश्चात गौशाला में जाकर गौवंश को चारा खिलाया और राजधानी लखनऊ लौट गये। मेले में दूर दराज से आये अधिकांश देवीभक्त यहाँ स्थित सूर्य कुंड मे पवित्र स्नान कर पेट पलनिया चलकर माँ के दर्शन करते है। मंदिर के महन्त योगी मिथलेश नाथ ने धर्मग्रंथो का हवाला देते हुये बताया कि पिता दक्ष प्रजापति के यहाँ आयोजित बड़े अनुष्ठान मे अपने पति इष्टदेव देवाधिदेव महादेव को न्योता और स्थान न दिये जाने से क्षुब्ध माँ जगदम्बा ने स्वयं को अग्नि को भेंट कर सती कर लिया था। माता के सती होने से आक्रोशित महादेव अत्यंत दुखी हुये और माता सती के शव को कंधे पर रखकर तांडव करने लगे। शिव तांडव से धरती थर्राने लगी जिससे संसार मे व्यवधान उत्पन्न होने लगा। संसार को विनाश से बचाने के लिये भगवान विष्णु ने सती के अंगो को सुदर्शन चक्र से खण्डित कर दिया। जिन जिन स्थानों पर माता के अंग गिरे वह स्थान शक्तिपीठ माने गये। यहाँ पाटन गांव मे माँ जगदम्बा का बांया स्कंद पाटम्बर समेत गिरा, तभी से इसी शक्तिपीठ को माँ पाटेश्वरी देवी पाटन मंदिर के नाम से जाना जाता है।

एक गर्भगृह भी स्थित है जहाँ माता सीता का पाताल गमन हुआ था। नव दुर्गाओ माँ शैलपुत्री ,कुष्माडा ,स्कंदमाता,कालरात्रि ,महागौरी ,चंद्रघंटा ,सिद्धदात्री,ब्रह्म्चारिणीऔर कात्यायनी की प्रतिमायें मंदिर मे स्थापित है। मंदिर मे स्थित गर्भगृह सुरंग पर माँ की प्रतिमा विद्यमान है। यहाँ कई रत्नजडित छतर है। ताम्रपत्र पर दुर्गा सप्तशती अंकित है। मंदिर मे स्थापना काल से ‘अखंड ज्योति’ प्रज्जवलित है। यहाँ प्रमुख रुप से रोट का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

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