जानिए कौन है वृन्दावन के प्रेमानंद जी महाराज ?

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Premanand Ji Maharaj
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Premanand Ji Maharaj: कुछ दिन पहले धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री सुर्खियों में थे। जहां एक तरफ धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री दावा करते हैं कि वो लोगों की मन की बात को पढ़ लेते हैं। अपनी चमत्कारी शक्तियों की वजह से देश-दुनिया में सुर्खियां बने हुए हैं। इसी बीच एक और बाबा हैं, जो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे है औऱ उनका मनना है कि चमत्कार कुछ नहीं होता है। चमत्कार दिखाना, भाग्य बताता सब ड्रामा है। धीरेंद्र शास्त्री के मुद्दे पर संत समाज भी बटा हुआ नजर आ रहा है। चलिए आपकों बताते है कि आखिकार कौन है बाबा ?

शायद आपने भी सुना होगा कि वृन्‍दावन में एक ऐसे संत हैं जिनकी दोनों किडनियॉ पिछले कई सालों से खराब हैं, जो पीले वस्‍त्र धारण करते हैं और लोगों के हर स्‍तर के सावलों के उत्‍तर एकांत वार्ता के माध्‍यम से देते हैं। जिनका नाम है श्री प्रेमानंद जी महाराज।

Premanand Ji Maharaj

वृंदावन में निवास करना यानी भगवान के चरणों में शरण मिल जाना वृंदावन का दूसरा नाम मोक्ष है। यहां पर वास करना राधा रानी की कृपा के बिना संभव नहीं है। जो भक्त राधारानी को रिझा लेता है उसे ही वृन्दावन में रहना का सौभाग्य प्राप्त होता है।

संतों का कहना है कि जन्मों-जन्मों की अच्छे आचरण और भगवान की सेवा के बाद ही वृंदावन में वास होता है। जब बात राधा रानी की कि जाती है तो राधा वल्लभ संप्रदाय के महान संत श्री प्रेमानंद जी महाराज का मन में स्मरण होता है। मेरा स्वयं का मानना है कि इनके मुखारविंद से निकले हुए शब्द मुर्दे को भी जीवित कर दें। चालिए आपको बताते है कि कौन है प्रेमानंद जी महाराज….

कौन है प्रेमानंद जी महाराज ?

  • प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज एक संत है।
  • पीले बाबा के नाम से भी जाने जाते है।
  • वृंदावन में रहते हैं और लाखों लोगों का मार्गदर्शन करते हैं।
  • प्रेमानंद महाराज का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
  • महाराज जी मूल रूप से उत्‍तर प्रदेश के कानपुर के रहने वाले है।
  • पिता का नाम शंभू पांडे और माता का नाम रमा देवी।
  • प्रेमानंद के बचपन का नाम था अनिरुद्ध कुमार पांडे।
  • महज 13 साल की उम्र में छोड़ दिया था अपना घर।
  • छोटी उम्र में ही उन्होंने संन्यासियों से ली अपनी दीक्षा।

धार्मिक माहौल के बीच पले-बड़े प्रेमानंद जी के भीतर भी आध्यात्मिक चिंगारी तीव्र हो गई। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही पूजा-पाठ करना शुरू कर दिया था। कहते हैं कि 5वीं कक्षा में उन्होंने गीता प्रेस की सुख सागर को पढ़ना शुरू कर दिया था। 9वीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने अध्यात्म का रास्ता चुन लिया था। उनका अधिकांश जीवन गंगा नदी के तट पर बीता, क्योंकि प्रेमानंद ने कभी किसी आश्रम के जीवन को स्वीकार नहीं किया। कठोर सर्दियों में भी उन्होंने गंगा में तीन बार स्नान करने की अपनी दिनचर्या को कभी नहीं रोका। वो कई दिनों तक बिना भोजन के उपवास करते थे और उनका शरीर ठंड से कांपता था, लेकिन वह भगवन ध्यान में पूरी तरह से लीन रहते थे।

चलिए आपको बताते है कि कैसे महाराज जी का वृंदावन आना हुआ

कहते है संन्यास मार्ग में ही प्रेमानंद को भगवान सदाशिव के स्वयं दर्शन हुए थे। प्रेमानंद खुद कहते हैं कि भगवान शिव की कृपा से ही वह वृंदावन आए थे। कहते हैं महाराजश जी एक दिन बनारस में एक पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान कर रहे थे, तभी उनको राधा-कृष्ण की महिमा का आभास हुआ। बाद में, एक संत की एक प्रेरणा ने उन्हें रास लीला में भाग लेने के लिए राजी किया।

उन्होंने एक महीने के लिए रास लीला में भाग लिया। यह एक महीना उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। बाद में प्रेमानंद मथुरा जाने के लिए एक ट्रेन में सवार हुए और वृंदावन आ गए। कहते हैं प्रेमानंद की वृंदावन में शुरुआती दिनचर्या वृंदावन की परिक्रमा और बांके बिहारी के दर्शन थी।

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– Shivani Bhadouria