आदर्शवाद स्थापना ही शिक्षक का मूल कर्तव्य शिक्षक दिवस पर प्रणय कुमार सिंह के विचार

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आदर्शवाद स्थापना ही शिक्षक का मूल कर्तव्य
शिक्षक दिवस पर प्रणय कुमार सिंह के
विचार

रिपोर्ट सुभाष शास्त्री वाराणसी

आदर्शवादी होना एक महान और सर्वोत्तम गुण है। व्यक्ति के आदर्शवादी गुणों की चर्चा समाज आदिकाल से करती चली आई है। ऐसे गुणों की सिर्फ चर्चा ही नहीं होती है बल्कि आदर्शवादी गुण समाज के लिए प्रतिमान भी होते हैं। आदर्श में नैतिकता, ईमानदारी,सच्चाई,सिद्धांत,सरलता,सहजता,परोपकार,क्षमा भाव आदि का समावेश होता है।इस आदर्श स्थापना की बात सभ्य समाज निरंतर करता रहता है।एक अच्छे देश का अभीष्ट उद्देश्य होता है कि उसके सभी नागरिक आदर्श पथ चले और उसके अनुगामी बने। यह आदर्श प्रत्येक व्यक्ति में होगा तो जो जहां रहेगा वहीं पर उसके कार्य और व्यवहार उचित रहेंगे।कहा जाता है कि नेता,वैज्ञानिक,किसान हो या राष्ट्र का कोई भी व्यक्ति सभी को आदर्शवादी होना चाहिए। चूंकि शिक्षक समाज का महत्वपूर्ण अंग होता है इसलिए उसके आदर्श वादी व्यवहार पर सबकी निगाहें रहती हैं।शिक्षक ही समाज की भावी पीढ़ी को तैयार करता है इस कारण से समाज को उससे अधिक उम्मीदें लगी रहती है।
छात्र घर परिवार समाज के साथ अधिक समय तक शिक्षण संस्थानों में शिक्षक के सानिध्य में रहता है।जहां वह पल प्रतिपल सीखता रहता है।उसके आसपास जो भी क्रिया या प्रक्रिया होती है वह छात्र के मानस पटल पर अपने प्रतिबिंब छोड़ती है।भारतीय समाज गहरे संबंधों का विशाल तना-बना है। सुदूर का ग्रामीण समाज हो या महानगरों का समाज हो शिक्षकों से आज भी सभी को उम्मीदें रहती है।इस कारण से भी शिक्षक छात्र के साथ-साथ समाज के लिए भी आदर्शवादी है।शिक्षक के व्यवहार,आचरण यहां तक की भाषा,भूषा तक लोगों को प्रभावित करते हैं। वह अपने वाणी के साथ-साथ अन्य क्रियाकलापों से भी लोगों को सीखने की एक लकीर छोड़ता जाता है। तब की जब पूरा का पूरा समाज शिक्षक को आदर्श मानता हो तो ऐसे में शिक्षकों का दायित्व अधिक हो जाता है।
वर्तमान समय में शिक्षकों के समक्ष चुनौतियां भी हैं यह चुनौती सिर्फ सामाजिक नहीं बल्कि सरकारी तौर पर भी हैं। आदर्श प्रस्तुत करने वाले शिक्षक को सरकार के अधिकारी गाहे बगाहे परेशान करते रहते हैं।कागजों पत्रावलियों के उत्तर के कुचक्र में फंसाने का कुत्सित प्रयास होते हैं। शिक्षकों को कर्तव्य से विमुख होने के अन्य कई कारण भी हैं।लेकिन मेरा यह मानना है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी आदर्शवाद के पथ पर चलकर ही शिक्षक एक उदाहरण बन सकता है। क्योंकि इसी तरह की चुनौतियां छात्र और समाज के समक्ष भी है।विपरीत परिस्थितियों में भी आदर्श का त्याग न करना ही आदर्शवाद पर चलने की प्रथम सीढ़ी है।हाल ही में माननीय उच्च न्यायालय प्रयागराज के माननीय न्यायाधीश श्रीमान आर आर अग्रवाल ने मौखिक रूप से तल्ख टिप्पणी की थी।उन्होंने शिक्षकों से एक बेहतर समाज बनाने की उम्मीद की। राजनीति के फेर में न पड़ने तथा नशे आदि से दूर रहने की ओर इशारा किया था।माननीय ने शिक्षकों को अधिक से अधिक ज्ञानवान और शिक्षित होने पर बल दिया। साथ ही माननीय न्यायधीश महोदय ने सरकार के द्वारा शिक्षकों को तमाम नियमों में उलझने को भी गलत माना।माननीय न्यायधीश महोदय ने कोर्ट में टिप्पणी थी की शिक्षक को अपने कार्य में संलग्न रहना चाहिए और सरकार को उसके लिए उन्हें निर्बाध वातावरण देना चाहिए।
अवश्य ही शिक्षक को अपने कार्यों का निर्वहन और निष्पादन करना प्रथम दे होना चाहिए। उन्हें स्वयं आदर्शवादी बनने के साथ-साथ आदर्शवाद की स्थापना के लिए प्रयास करना चाहिए। लाख चुनौतियों को सहते हुए भी अपने को उदाहरण के रूप में समाज के समक्ष गौरव के साथ प्रस्तुत करना होगा।शिक्षक होना गौरव की बात है। गौरवानुभूति के लिए आदर्शवादी समाज का निर्माण करना पड़ेगा।तेजी से हाईटेक होते समाज में इन गुणों के प्रचार प्रसार के लिए अलग से प्लेटफार्म बनाने होंगे।ताकि आदर्शवादी शिक्षक,छात्र,समाज के महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान लोगों के उदाहरण समाज के समक्ष प्रस्तुत किया जा सके।