“विदेशी टीकों की खरीद पर केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया का बयान”

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"विदेशी टीकों की खरीद पर केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया का बयान"

मनसुख मांडविया, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने स्पष्ट किया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने विदेश में निर्मित वैक्सीनों की खरीद नहीं की थी। उन्होंने बताया कि विदेशी कंपनियां क्षति से सुरक्षा की मांग कर रही थीं और यह छूट भारतीय वैक्सीन निर्माताओं तक नहीं पहुंची थी। इसके साथ ही, उन्होंने यह दावा किया कि केंद्र ने विदेशी वैक्सीनों को भारत आने से रोकने का निर्णय नहीं लिया था। जब विदेशी कंपनियों ने आवेदन किया था, तो उन्हें आपात स्थिति में उपयोग करने की मंजूरी दी गई थी, ठीक वैसे ही जैसे भारतीय कंपनियों को दी गई थी। उन्होंने इस बात को दुरुस्त किया कि भारत ने किसी देश को वैक्सीन आने से रोका नहीं है, बल्कि उन्हें उपयोग करने की मंजूरी दी गई थी।

विदेशी कंपनियां छूट की मांग कर रही थीं

विदेशी कंपनियां छूट की मांग कर रही थीं जो भारतीय कंपनियों को नहीं मिली थी, इसलिए सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। मांडविया ने यह भी बताया कि भारत में वैक्सीनों के साथ-साथ स्पूतनिक V भी उपलब्ध था और इसके अलावा भारतीय वैक्सीनेशन भी मौजूद थी। उन्होंने कहा कि कोई भी वैश्विक कंपनी भारत आकर अपने उत्पाद बेच सकती है, चाहे वह दवा हो या वैक्सीन, और भारत को इससे कोई समस्या नहीं होती है। हालांकि, विदेशी कंपनियों को भारतीय नियम-कायदों का पालन करना होगा।

भारतीय कंपनियां क्षति से सुरक्षा की मांग नहीं कर रही थीं और उन्होंने भारतीय नियमों का पालन किया है। मांडविया ने कहा कि वैश्विक कंपनियों को भी ऐसा ही करना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि वैश्विकरण के समय में देशों को स्वास्थ्य क्षेत्र में एक-दूसरे के साथ सहयोग करने की आवश्यकता होती है।

मांडविया ने कहा कि भारत दुनिया के साथ अपने फार्मा और स्वास्थ्य क्षेत्रों के संबंधों का विस्तार करना चाहता है और किसी के खिलाफ या किसी का पक्ष नहीं लेता है। भारत विदेशी और भारतीय कंपनियों पर समान नियम-कायदे लागू करता है और सभी को समान अधिकार प्रदान करता है। विश्व भी इस देश की इस स्थिति की सराहना करता है।

यह बात बताती है कि भारत ने अपने वैक्सीन प्रोग्राम के दौरान विदेशी कंपनियों की वैक्सीनों की खरीद पर विचार किया था, लेकिन वे कंपनियां खर्च और सुरक्षा की मांग कर रही थीं, जिसके कारण वे भारत में उपलब्ध नहीं हुईं। इसके बदले में, भारत ने अपने अपने स्वदेशी वैक्सीनों के विकास और उत्पादन पर जोर दिया और उन्हें अपने नियम-कायदों के अनुसार मंजूरी दी।

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